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Wednesday, February 8, 2012

हाइकू

नंगे शहर में,
लक़दक़ लिबास में,
मैं बेशर्म ।

Tuesday, July 26, 2011

कारगिल शहीदोँ के प्रति

ऐ शहीद-ए-कारगिल,
रो-रो पुकारे तुझको दिल ॥
देकर आहुति प्राणो की,
इतिहास इक फिर से गढा ॥
खाक मेँ तुम मिल गये पर,
देश का गौरव बढा ॥
कैसे मानू मिट गये तुम,
हो गये तुम तो अमर ॥
सर झुके है,आँखे नम है,
है यहाँ वीराना-पन ॥
अर्पित तुम्हे श्रद्धांजलि,
करता नमन सारा वतन ॥
ऐ शहीद-ए-कारगिल,
रो-रो पुकारे तुझको दिल ॥

रचयिता:-मयंक शेखर गौनियाल'शशांक'
Email:-mayankgauniyal@yahoo.com/mayankgauniyal@gmail.com
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Cell:-09410572748
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Monday, July 25, 2011

अमर शहीद श्रीदेव सुमन

अ:-अग्रदूत बन गढ भूमि पर आप अवतरित हुए ॥
म:-मर्माहत प्रजा की मुक्ति के स्वर फिर मुखरित हुए ॥1॥
र:-रश्मि-पुंज-सा तेज़,ओज-मय वाणी लिये ॥
श:-शक्ति का संचार कर,जन,नव-ऊर्जा से भर दिये ॥2॥
ही:-हिल उठा टिहरी सिँहासन,राज-सत्ता हिल गई ॥
द:-दमन-चक्र ऐसा चला कि क्रूरता भी सहम गई ॥3॥
श्री:-श्रीदेव कैसे आपने,यातना इतनी सही ॥
दे:-देख सुन मन द्रवित है,बस आप तो थे आप ही ॥4।।
व:-वक्त की पगडंडियोँ पर,पद-चिन्ह अंकित कर गये ॥
सु:-सुमन उत्तराखंड के,तुम अमर होकर गये ॥5॥
म:-मन मेँ रहे हर उत्तराखंडी के,नित भाव भी यह ॥
न:-नहीँ हो व्यर्थ 'शशांक'श्रीदेव का बलिदान भी यह ॥6॥

रचयिता:-मयंक शेखर गौनियाल'शशांक'
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Monday, June 27, 2011

ग़ज़ल

तू नहीँ है सनम,तेरा अहसास तो है ॥
तुझको पाने की क़सक साथ तो है ॥1॥
आईना मेरे चेहरे मेँ तेरा अक़्स दिखाता क्यो है॥
मेरे माशूक़ तेरी यादोँ की खनक साथ तो है ॥2॥
खुद को तन्हाई के स्याह,अन्धेरोँ मे घिरा पाता हूँ॥
तेरे हर सूँ,जगमगाते हुए चरागात तो है ॥3॥
मेरी साँसो मे तेरी खुश्बू महक़ती क्यूँ है ॥
और सीने मे सुलगते हुए ज़ज़्बात तो है ॥4॥
तेरी यादोँ के समन्दर मे गर्त हुआ जाता हूँ ॥
है अज़ीब तिष्नगी,पर सुक़ून-ए-हालात तो है ॥5॥
ए मेरी माना-ए-मुहब्बत,मेरी मंज़िल-ए-इश्क॥
चन्द पुरक़शिश लम्हे'शशांक'फिर उदास रात तो है॥6॥


रचयिता:- मयंक शेखर गौनियाल 'शशांक'
Email:-mayankgauniyal@yahoo.com
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Friday, June 10, 2011

A TRIBUTE - TO MAHANT SHRI INDRESH CHARAN DAS JI MAHARAJ

गढवाल मण्डल रम्य उत्तर मेँ वनस्थल है बसा,
केदार-बद्रीनाथ धामो से पुनीत सदा लसा ॥
सुरम्य घाटी दून भी इसमे बसी विख्यात है,
राम राय दरबार जिसका हृदय-स्थल प्रख्यात है ॥1॥
श्री गुरू राम राय जी महान ने स्थापित किया,
माता पंजाब कौर ने भी कुशल संचालित किया ॥
श्री औद्द दास जी सज्जादानशीन महंत प्रथम हुए,
श्री हर प्रसाद जी,श्री हर सेवक जी दूजे,तीजे भये॥2॥
चौथे श्री सरूप दास जी,पाँचवे श्री प्रीतम दास भी,
छठे श्री नारायण दास जी,सातवेँ श्री प्रयाग दास भी॥
आठवेँ श्री लक्ष्मण दास जी,महंत यशस्वी हुए,
कष्ट हरने दीन-दुखियोँ के सदा तत्पर रहे॥3॥
अन्धेरा है,अन्धेरा है,यह शोर जब होता रहा,
श्री इन्द्रेश जी बन ज्ञान-दीपक,तब मौन ही जलता रहा॥
सन पैंतालीस ईस्वी मेँ,श्री महंत नौवेँ हुए,
पद-दलित,उपेक्षित शिक्षा के प्राण मानो प्रतिष्ठित हुए॥4॥
श्री गुरू राम राय शिक्षा संसथान स्थापित किया,
जो दूर करने अज्ञान-जडता एक अविरल अभियान हुआ॥
ज्ञान का भास्कर श्री गुरू राम राय दरबार को बनाया,
जिसके रश्मि-पुँज से उत्तर भारत जगमगाया ॥5॥
प्रकाश स्तम्भ रूप मे विद्यालय स्थापित किये,
जहाँ बाँटते है रोशनी,बन के शिक्षकगण दिये ॥
खींच तम की यातना से,ज्ञान-ज्योति बना दिया,
जाने कितने दीन-हीनो को,ज्ञान का अमृत दिया ॥6॥
"सादा जीवन-उच्च विचार" यह आपका दर्शन रहा,
देश-भक्ति भाव भी नित्य ही मन मे बहा ॥
भारत-छोडो,सन बयालीस मे सक्रिय हिस्सा लिया,
काल के कपाल पर,चिन्ह अपना अंकित किया ॥7॥
तेज़ मुखमण्डल पर रहा नित,ओज़ वाणी मे रहा,
मेधा रही मष्तिष्क मे,करूणामृत हृदय मेँ बहा ॥
दीन-दुखियोँ के कष्ट हरने की भावना भी नित रही,
उपमा नहीँ है आपकी,बस आप तो थे आप ही ॥8॥
दो हज़ार,दस जून प्रातः,ली अप्रत्याशित विदा,
रोते,बिलखते जन यहाँ है,आपको है क्या पता ॥
झण्डे जी के भाल को,और भी उन्नत किया,
महामना श्री इन्द्रेश जी,वाह!क्या जीवन जिया ॥9॥
"पूर्ण होँगे स्वप्न गुरू के,यह हमारा संकल्प है",
दसवेँ महंत श्री देवेन्द्र जी का यह कथन स्पष्ट है ॥
आपके संकल्प मे शामिल हुई है,इस चमन की हर कली,
हाँ-"शशांक" बस यही है,सबसे बडी श्रद्धांजलि ॥10॥

रचयिता:- मयंक शेखर गौनियाल'शशांक'
Ph.:- 09410572748
Email:- mayankgauniyal@yahoo.com
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Facebook:- Mayank Gauniyal 'Shashank'

Sunday, May 29, 2011

इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मै

ज़लज़लोँ के बीच इक चराग बन खडा हूँ मैँ,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मैँ ।
ये लरज़ते लबोँ की ज़ुम्बिशेँ,
ये खनकते हुस्न की ख्वाहिशेँ,
ये अलमस्त नज़र की गुज़ारिशेँ,
ये दौलत-ओ-इमदाद की बारिशेँ,
इन सब लज़्ज़तोँ से बडा हूँ मै,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मै ।
ए पाक मुहब्बत के सौदाई,
वल्लाह तेरी बेहयाई,
ज़माने मेँ की रुसवाई,
इधर मातम,उधर शहनाई,
इस तूफाँ से आगे बढ चला हूँ मै,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मै ।
मेरी ज़िन्दगी को बेमाने बना दिया,
दिल पे मेरा नाम लिखा और मिटा दिया,
इश्क को बेमौत ही दफना दिया,
इक ज़हीन शख्स को,धूल मे मिला दिया,
रिसते ज़ख्मोँ को सिलकर फिर खडा हूँ मै,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मै ।

रचयिता:- मयंक शेखर गौनियाल 'शशांक'
फोन:-09410572748
Email:-mayankgauniyal@yahoo.com
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THE EDUCATION

T-This is great pleasure to mine,
H-Hay! I am looking, as sun shine.
E-Elicited many mysteries of life,
E-End the struggle,achievement is bright.
D-Dare with care, giving me caution,
U-Unfabled knowledge get, this is suggestion.
C-Catch high skills, removing the shy,
A-And be a human, can not you why ?
T-Torching my path with talented light,
I-Inspirating me to be nice and right.
O-O my dear! be the 'Proud of Nation',
N-None is telling me, besides of 'The Education'.

Composed by:- Mayank Shekhar Gauniyal 'Shashank'
Address:- 2-B,Sewak Asharam Road,Dehradun Pin-248001
Phone:- +919410572748
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Saturday, May 7, 2011

माँ-एक

जब अपने इर्द-गिर्द पाता हूँ,
चुभती निगाहोँ का जमघट,
उपेक्षा भरे व्यंग्य-बाणोँ का कारवाँ,
वक्त के झंझावतोँ से थककर,
कटे दरख़्त-सा निढाल/बेबस,
ढूँढता हूँ अपना बचपन,
वक्त के खौफनाक बियावन मेँ
एक अधूरापन,एक उलझाव,एक धुँधलका,
हर-पल कचोटता है,मेरे वज़ूद को,
शायद तेरा ममत्व, समय से पहले
छिन जाने का प्रतिरूप है ये,
इसलिये तू बहुत याद आती है माँ........

रचयिता-मयंक शेखर गौनियाल 'शशांक'
cell- 09410572748
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Saturday, April 30, 2011

मैँ और तुम

इक नदी के दो किनारे,मैँ और तुम,
इक दूजे बिन बेसहारे,मैँ और तुम ।
मौसम-ए-गर्दिश मेँ बिचारे,मैँ और तुम,
इस ज़हाँ मे किसको पुकारे,मैँ और तुम ।
दिल मे उठती टीस हैँ अब,मैँ और तुम,
रुसवाई की इक खीझ हैँ अब,मैँ और तुम ।
बेसबब,बेअसर ताकीद हैँ अब,मैँ और तुम,
अफसानोँ की बस चीज़ हैँ अब,मैँ और तुम ।
तन्हा शामोँ के मायूस गुलाब,मैँ और तुम,
स्याह रातोँ के उदास चराग,मैँ और तुम ।
बेज़ार होता हुआ शबाब,मैँ और तुम,
ज़ख्मी परिन्दोँ की परवाज़,मैँ और तुम ।
सौन्धे-सौन्धे प्यार की निशानी,मैँ और तुम,
फिर तडपते दिलोँ की कहानी,मैँ और तुम ।
इक पपीहे की ज़बानी, मैँ और तुम,
मिट चुकी जो ताब पुरानी,मैँ और तुम ।

रचयिता-मयंक शेखर गौनियाल'शशांक'
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Friday, April 22, 2011

On the "World Earth Day"

The earth is our mother,
We have to save it's beauty;
Cover it,all over,with plants and trees,
To clear it's debt is our duty.

Mother earth is crying,
Don't torture me more;
Do plantation,don't be naughty,
Restore again my losing beauty.

By:-MAYANK SHEKHAR GAUNIYAL 'SHASHANK'
2-B,SEWAK ASHRAM ROAD, DEHRADUN 248001
CELL:-+919410572748
E-MAIL:-mayankgauniyal@yahoo.com
YAHOO MESSENGER:-mayankgauniyal
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पृथ्वी दिवस पर

यह धरती है,हम सबकी माँ,
इसका श्रंगार बचाना है ,
पेड-पौधोँ से,आच्छादित कर,
माँ का कर्ज़ चुकाना है ।

धरती करती चीख-पुकार,
बन्द करो अब अत्याचार,
पेड-लगाओ,पौधे रोपो,
लौटा दो मेरा श्रंगार ।

रचयिता:-मयंक शेखर गौनियाल "शशांक"
चलितवाणी:- 09410572748

Saturday, April 9, 2011

Once upon a time.............

Once upon a time;
There was honesty
in the societies.
All the people would perform
their duties very well.
Once upon a time;
Love,affection was in
their greatest height.
There was no pomp show,
people never pretended,that,
they love someone too much,
because there was true love
among the people which need
no words to express.
Once upon a time;
Everybody was ready to
sacrifice to his/her
beloved one
without any expectation.
Once upon a time;
Women would bear
a great moral character.
Every woman looks like a
"Goddess"
due to high moral values.
They were not the means of
selling products (AAMSUTRA etc.)
and not treated
as a product.
Once upon a time;
There was no battle
among the people,
among the nations,
among the religions,
among the civilizations.
There was no blood,
in the rivers.
There was peace and harmony
everywhere on the earth.
Once upon a time;
There were
great spritual leaders,
great politicians,
great kings and
great mentors.
No one cheat the people.
Everybody loved the people,
like family members.
Once upon a time;
People are not
afraid of corruption.
There was no need of agitation
to check the corruption.
There was no need to
a seventy three years old person
to sit on fast till death.
We the people,
should take the initiatives
to reform the system.
We all the people,
should think seriously over it;
Which kind of society we want ?
Which kind of system we want ?
What kind of person we should support ?
It is not the time to deliver
speeches on corruption,but,
to take actions to curb it.
Then we would be
free from it and
never say
"Once upon a time............."
By:-Mayank Shekhar Gauniyal 'Shashank'
2-B,SEWAK ASHRAM ROAD, DEHRA DUN
Cell:-+919410572748
E-mail:-mayankgauniyal@yahoo.com
Google Talk:-Mayank Gauniyal
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Skype:-mayank.gauniyal1

Wednesday, April 6, 2011

गीत :- मीत मेरे कब आओगे ? [यह गीत मेरे प्यार को,मेरे दिल की पुकार है,जिसका आखिरी साँस तक, मुझे इंतज़ार है। ]

थरथरा उठ्ठा है यौवन,
कामना का ज्वार निर्मम,
मद-भरा है,अँग-प्रत्यँग,
तडपता है विरही-मन,
मीत मेरे कब आओगे ?
तुम ही तो हो गीत मेरे,
प्रीत के संगीत मेरे,
मेरी प्यासी कामना के,
तुम ही तो हो घन-घनेरे,
मीत मेरे कब आओगे ?
प्रिये!तन मेँ झंकार भर दो,
पाषाण का श्रंगार कर दो,
ले के आलिंगन मेँ मुझको,
प्राण का संचार कर दो,
मीत मेरे कब आओगे ?
वो मधुर स्पर्श तुम्हारा,
स्पन्दित था तन-मन सारा,
वेदना के गहरे भँवर मेँ,
डूबता मैँ दर-दर का मारा,
मीत मेरे कब आओगे ?
पात गिरते झर-झरा-झर,
निर्बाध बहता समय-निर्झर,
तुमको समर्पित ज़िन्दगी है,
छायी हो,मानस-पटल पर,
मीत मेरे कब आओगे ?
माँझी मेरे नैया पार कर दो,
नव-प्रणय का विश्वास भर दो,
मम सृष्टि मेँ,नव दृष्टि दे,
प्रेममय मधुमास भर दो,
मीत मेरे कब आओगे ?
रचयिता:-मयंक शेखर गौनियाल "शशांक"
cell:- +919410572748
E-mail:-mayankgauniyal@yahoo.com
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skype:-mayank.gauniyal1
2-B,सेवक आश्रम रोड,देहरादून