ज़लज़लोँ के बीच इक चराग बन खडा हूँ मैँ,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मैँ ।
ये लरज़ते लबोँ की ज़ुम्बिशेँ,
ये खनकते हुस्न की ख्वाहिशेँ,
ये अलमस्त नज़र की गुज़ारिशेँ,
ये दौलत-ओ-इमदाद की बारिशेँ,
इन सब लज़्ज़तोँ से बडा हूँ मै,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मै ।
ए पाक मुहब्बत के सौदाई,
वल्लाह तेरी बेहयाई,
ज़माने मेँ की रुसवाई,
इधर मातम,उधर शहनाई,
इस तूफाँ से आगे बढ चला हूँ मै,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मै ।
मेरी ज़िन्दगी को बेमाने बना दिया,
दिल पे मेरा नाम लिखा और मिटा दिया,
इश्क को बेमौत ही दफना दिया,
इक ज़हीन शख्स को,धूल मे मिला दिया,
रिसते ज़ख्मोँ को सिलकर फिर खडा हूँ मै,
इस पार या उस पार की ज़िद पर अडा हूँ मै ।
रचयिता:- मयंक शेखर गौनियाल 'शशांक'
फोन:-09410572748
Email:-mayankgauniyal@yahoo.com
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