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Monday, July 25, 2011

अमर शहीद श्रीदेव सुमन

अ:-अग्रदूत बन गढ भूमि पर आप अवतरित हुए ॥
म:-मर्माहत प्रजा की मुक्ति के स्वर फिर मुखरित हुए ॥1॥
र:-रश्मि-पुंज-सा तेज़,ओज-मय वाणी लिये ॥
श:-शक्ति का संचार कर,जन,नव-ऊर्जा से भर दिये ॥2॥
ही:-हिल उठा टिहरी सिँहासन,राज-सत्ता हिल गई ॥
द:-दमन-चक्र ऐसा चला कि क्रूरता भी सहम गई ॥3॥
श्री:-श्रीदेव कैसे आपने,यातना इतनी सही ॥
दे:-देख सुन मन द्रवित है,बस आप तो थे आप ही ॥4।।
व:-वक्त की पगडंडियोँ पर,पद-चिन्ह अंकित कर गये ॥
सु:-सुमन उत्तराखंड के,तुम अमर होकर गये ॥5॥
म:-मन मेँ रहे हर उत्तराखंडी के,नित भाव भी यह ॥
न:-नहीँ हो व्यर्थ 'शशांक'श्रीदेव का बलिदान भी यह ॥6॥

रचयिता:-मयंक शेखर गौनियाल'शशांक'
Email:-mayankgauniyal@yahoo.com
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1 comment:

  1. sir i like it becoz tehri is my birth place and i love shri dev suman

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