Powered By Blogger

Wednesday, March 23, 2011

सरदार भगत सिँह

स-सत्य,स्वाधीनता को ही जीवन का वह ध्येय बना ।
र-रक्त मेँ थी क्रांति,बलिदान पथ पर वह चला      ।
दा-दारुण दशा पर देश की,हृदय उसका रो उठा     ।
र-रश्मि-पुँज था वह, तेज़ था जो भारत माँ पर लुटा ।
भ-भक्ति की तो देश की,बस देश ही तो ईष्ट है    ।
ग-गणराज्य भारत है ऋणी,यह भाव भी तो अभीष्ट है ।
त-तम घोर था,विकट स्वतंत्रता की जब राह थी    ।
सिँ-सिँह-सी किये तुम गर्जना,सरकार तब थर्रा उठी ।
ह-हुतात्मा भगत सिँह,राजगुरु,सुखदेव जी      ।
   अर्पित तुम्हेँ श्रध्दाँजली,अश्रु सुमन व नेह भी     ।
 रचयिता- मयंक शेखर गौनियाल "शशांक"
चलितवाणी- 09410572748
इस रचना का पाठ 14-08-2010 को आयोजित कवि-सम्मेलन मेँ माननीय मुख्यम्ंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल "निशंक" समक्ष किया गया ।
       Email-mayankgauniyal@yahoo.com
      YM name-mayanlgauniyal
       Skype name-mayank.gauniyal1