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Saturday, April 30, 2011

मैँ और तुम

इक नदी के दो किनारे,मैँ और तुम,
इक दूजे बिन बेसहारे,मैँ और तुम ।
मौसम-ए-गर्दिश मेँ बिचारे,मैँ और तुम,
इस ज़हाँ मे किसको पुकारे,मैँ और तुम ।
दिल मे उठती टीस हैँ अब,मैँ और तुम,
रुसवाई की इक खीझ हैँ अब,मैँ और तुम ।
बेसबब,बेअसर ताकीद हैँ अब,मैँ और तुम,
अफसानोँ की बस चीज़ हैँ अब,मैँ और तुम ।
तन्हा शामोँ के मायूस गुलाब,मैँ और तुम,
स्याह रातोँ के उदास चराग,मैँ और तुम ।
बेज़ार होता हुआ शबाब,मैँ और तुम,
ज़ख्मी परिन्दोँ की परवाज़,मैँ और तुम ।
सौन्धे-सौन्धे प्यार की निशानी,मैँ और तुम,
फिर तडपते दिलोँ की कहानी,मैँ और तुम ।
इक पपीहे की ज़बानी, मैँ और तुम,
मिट चुकी जो ताब पुरानी,मैँ और तुम ।

रचयिता-मयंक शेखर गौनियाल'शशांक'
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