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Wednesday, April 11, 2012

एक थी वो ............................................

ज़िन्दगी जवाँ हो रही थी, अरमान जवाँ हो रहे थे । ख़्वाबों को पंख लग रहे थे, आसमां छूने की कोशिश हो रही थी।
इक सपना था मन मे पल रहा, किसी साथी का इंतज़ार भी था ।
जो हाथों को अपने हाथों में लिए खुशियों में शामिल हो सके, जिसके कांधे पे सर रखकर अपना दर्द कह सकें। जो तन्हाइयों का साथी बन सके । न चाहत थी दौलत की, न चाहत थी ऐश-ओ-आराम की, चाहत थी आसमां छू लेने की, चाहत थी साथी की जो अरमानों को हवा दे सके ,प्रेरणा बन सके, पथ-प्रदर्शक बन सके.................
मुश्किलों में दीवार बन साथ दे सके................................
चाहत थी अपने दर्द में जो शामिल कर सके, चाहत थी उसके दर्द से भरे आँसू पोंछ सके।, चाहत थी जो अपने सीने से लगाकर, अपनी खुशियों में शामिल कर सके,..............
लेकिन , अरे..............................................
यह...........................क्या.................................
सुर्ख जोड़े में लिपटी............ बाबुल की गली से विदा होकर ................ कोसों दूर चौखट पर निहायत अकेली थी............
उस सूनी जगह किसी अपने को तलाशती , दिल में हजारों अरमान लिए जिसके लिए आई थी एक परी बन कर .........................
कोई नहीं था उसका, तन्हा थी, अकेली थी,................
दिल खून के आँसू रो पड़ा, ज़ार-ज़ार हो उठा ...........
शर्म-ओ-हया में लिपटी, संकोच और दर्द की गठरी, दर्द से कराह उठी,
ज़िन्दगी कैद हो गयी दीवारों में, तन्हाइयों के ग़मगीन अंधेरों में.........................
आंसुओं का सैलाब, जो बह चला , न थम सका कभी............
अरमान दफन हो गये,
ज़िन्दगी, अपनी ही ज़िंदा जली लाश की गर्म राख बनकर रह गई.................................................. .कहाँ गई.........कहाँ गई ..........कहाँ गई वो ,
गुम हो गई यहीं सर्द हवा में कहीं
अनाम ............गुमनाम .............बदनाम-सी वो .....................................................................................................courtesy...viji rwt.