Powered By Blogger

Monday, June 27, 2011

ग़ज़ल

तू नहीँ है सनम,तेरा अहसास तो है ॥
तुझको पाने की क़सक साथ तो है ॥1॥
आईना मेरे चेहरे मेँ तेरा अक़्स दिखाता क्यो है॥
मेरे माशूक़ तेरी यादोँ की खनक साथ तो है ॥2॥
खुद को तन्हाई के स्याह,अन्धेरोँ मे घिरा पाता हूँ॥
तेरे हर सूँ,जगमगाते हुए चरागात तो है ॥3॥
मेरी साँसो मे तेरी खुश्बू महक़ती क्यूँ है ॥
और सीने मे सुलगते हुए ज़ज़्बात तो है ॥4॥
तेरी यादोँ के समन्दर मे गर्त हुआ जाता हूँ ॥
है अज़ीब तिष्नगी,पर सुक़ून-ए-हालात तो है ॥5॥
ए मेरी माना-ए-मुहब्बत,मेरी मंज़िल-ए-इश्क॥
चन्द पुरक़शिश लम्हे'शशांक'फिर उदास रात तो है॥6॥


रचयिता:- मयंक शेखर गौनियाल 'शशांक'
Email:-mayankgauniyal@yahoo.com
Yahoo Messenger:- mayankgauniyal
Skype:- mayank.gauniyal1
Phone:- +919410572748
Facebook:- Mayank Gauniyal 'Shashank'
Twitter:- MAYANK_GAUNIYAL

Friday, June 10, 2011

A TRIBUTE - TO MAHANT SHRI INDRESH CHARAN DAS JI MAHARAJ

गढवाल मण्डल रम्य उत्तर मेँ वनस्थल है बसा,
केदार-बद्रीनाथ धामो से पुनीत सदा लसा ॥
सुरम्य घाटी दून भी इसमे बसी विख्यात है,
राम राय दरबार जिसका हृदय-स्थल प्रख्यात है ॥1॥
श्री गुरू राम राय जी महान ने स्थापित किया,
माता पंजाब कौर ने भी कुशल संचालित किया ॥
श्री औद्द दास जी सज्जादानशीन महंत प्रथम हुए,
श्री हर प्रसाद जी,श्री हर सेवक जी दूजे,तीजे भये॥2॥
चौथे श्री सरूप दास जी,पाँचवे श्री प्रीतम दास भी,
छठे श्री नारायण दास जी,सातवेँ श्री प्रयाग दास भी॥
आठवेँ श्री लक्ष्मण दास जी,महंत यशस्वी हुए,
कष्ट हरने दीन-दुखियोँ के सदा तत्पर रहे॥3॥
अन्धेरा है,अन्धेरा है,यह शोर जब होता रहा,
श्री इन्द्रेश जी बन ज्ञान-दीपक,तब मौन ही जलता रहा॥
सन पैंतालीस ईस्वी मेँ,श्री महंत नौवेँ हुए,
पद-दलित,उपेक्षित शिक्षा के प्राण मानो प्रतिष्ठित हुए॥4॥
श्री गुरू राम राय शिक्षा संसथान स्थापित किया,
जो दूर करने अज्ञान-जडता एक अविरल अभियान हुआ॥
ज्ञान का भास्कर श्री गुरू राम राय दरबार को बनाया,
जिसके रश्मि-पुँज से उत्तर भारत जगमगाया ॥5॥
प्रकाश स्तम्भ रूप मे विद्यालय स्थापित किये,
जहाँ बाँटते है रोशनी,बन के शिक्षकगण दिये ॥
खींच तम की यातना से,ज्ञान-ज्योति बना दिया,
जाने कितने दीन-हीनो को,ज्ञान का अमृत दिया ॥6॥
"सादा जीवन-उच्च विचार" यह आपका दर्शन रहा,
देश-भक्ति भाव भी नित्य ही मन मे बहा ॥
भारत-छोडो,सन बयालीस मे सक्रिय हिस्सा लिया,
काल के कपाल पर,चिन्ह अपना अंकित किया ॥7॥
तेज़ मुखमण्डल पर रहा नित,ओज़ वाणी मे रहा,
मेधा रही मष्तिष्क मे,करूणामृत हृदय मेँ बहा ॥
दीन-दुखियोँ के कष्ट हरने की भावना भी नित रही,
उपमा नहीँ है आपकी,बस आप तो थे आप ही ॥8॥
दो हज़ार,दस जून प्रातः,ली अप्रत्याशित विदा,
रोते,बिलखते जन यहाँ है,आपको है क्या पता ॥
झण्डे जी के भाल को,और भी उन्नत किया,
महामना श्री इन्द्रेश जी,वाह!क्या जीवन जिया ॥9॥
"पूर्ण होँगे स्वप्न गुरू के,यह हमारा संकल्प है",
दसवेँ महंत श्री देवेन्द्र जी का यह कथन स्पष्ट है ॥
आपके संकल्प मे शामिल हुई है,इस चमन की हर कली,
हाँ-"शशांक" बस यही है,सबसे बडी श्रद्धांजलि ॥10॥

रचयिता:- मयंक शेखर गौनियाल'शशांक'
Ph.:- 09410572748
Email:- mayankgauniyal@yahoo.com
Yahoo Messenger:- mayankgauniyal
Skype:- mayank.gauniyal1
Facebook:- Mayank Gauniyal 'Shashank'